राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर एवं बाड़मेर जिला प्रशासन द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ‘राजस्थानी नाट्य समारोह’ में उदयपुर की नाट्य संस्था ‘नाट्यांश सोसायटी ऑफ ड्रामेटिक एण्ड परफॉर्मिंग आर्ट्स’ के कलाकारों ने बाड़मेर के टाउन हॉल में नाट्य समारोह में के दूसरे दिन नाटक ‘दुल्हन एक पहाड़ की’ का मंचन मेवाड़ी भाषा में किया।
इसोबल एंड्रयूज़ द्वारा लिखित एवं रेखा सिसोदिया द्वारा निर्देशित, नाटक ‘दुल्हन एक पहाड़ की’ का यह दसवाँ मंचन हैं। इससे पूर्व इस नाटक के हिंदी व अंग्रेज़ी भाषा में बंगाल, उड़ीसा व राजस्थान में सफल मंचन हो चुके हैं। यह नाटक एक ऐसी लड़की पर आधारित है जो पहाड़ों पर रहती है और जो कभी बंदिशों मे नहीं रही। मगर शादी के बाद घर कि बंदिशों और पंपरायें उसे बंधना चाहती है। समय के साथ वो इन सभी बन्धनों को अपनाने के साथ-साथ अपने दृढ़ निश्चय, इच्छाशक्ति और मजबूत विचारो के बल पर वो बदलाव लाती है।
यह नाटक वर्तमान समय से 60 साल पुराना होने के बाद भी आज भी उतना ही सटीक और समसामयिक है जितना उस समय में था। बंधन हमेशा से ही औरतो पर ही रखे जाते है फिर चाहे वो समाजिक हो, पारिवारिक हो या व्यक्तिगत, इन सभी बंधनों के होने के बाद भी समय के बदलाव के साथ वैचारिक बदलाव होने लगते है और जिसे हमे सहर्ष स्वीकारना चाहिए। यह नाटक डर, अज्ञानता, अंधकार और रोशनी के बीच बराबर संघर्ष करता रहता है जिसमें अंततः ज्ञान से उपजी रोशनी से चेतना जागृत होती है।
संयोजक मोहम्मद रिज़वान ने बताया कि नाटक में माँ की भूमिका में रेखा सिसोदिया, दादी की भूमिका में निशा गौड़, पड़ोसन की भूमिका में हर्षिता शर्मा और दुलहन की भूमिका में उर्वशी कंवरानी रहे। मंच पार्श्व में वस्त्र विन्यास एवं रूप सज्जा – योगिता सिसोदिया, संगीत चयन – अब्दुल मुबीन ख़ान पठान, संगीत संचालन – मयूर चावला, मंच सहायक – भुवन जैन, महावीर शर्मा, प्रकाश परिकल्पना – अशफ़ाक़ नुर ख़ान पठान का रहा। इस नाटक का मेवाड़ी रूपान्तरण – लता कुंवर सिसोदिया, अमित श्रीमाली, अगस्त्य हार्दिक नागदा ने किया।
नाटक समाप्ति के पश्चात बारमेर के वरिष्ठ लेखक व रंगकर्मी बंशीधर तातेड ने नाटक की निर्देशिका रेखा सिसोदिया को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। आयुक्त योगेश आचार्य, पुरुषोत्तम सोलंकी, गोपीकिशन, मुकेश जोशी, ओम जोशी, ईन्द्रप्रकाश पुरोहित, कमल सिंहल, प्रेम सिंह निर्मोही, अल्का शर्मा, सुंदर दान देथा सहित शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
नाटक का कथासार
नाटक एक नयी दुल्हन और उसके द्वंद पर आधारित है, आजाद ख्याल खुशमिजाज नादान प्रकृति। नाटक घर के रोजमर्रा के काम-काज से शुरू होता है जहां एक तरफ माँ घर के सभी कामों को जल्दी-जल्दी खत्म करने में लगी हुई है वही जिया (दादी) तंमयता से चरखा चलाती है। इन दोनों की पूरी जिंदगी इसी घर मे गुजरी है और अंधेरे के इतनी आदी हो गए है की वो रोशनी की एक किरण भी बरदाश्त नहीं कर पाते। साल-दर-साल मेले में जो भी बदलाव होते गए है वो इन्हें नहीं पसांद।
इनके घर में पड़ोसन आती है जो सब कुछ जानते हुए भी अनजान रहती है और इधर की बातें उधर करती है। उसकी यह आदत माँ को बिलकुल पसंद नहीं पर लोक-लाज के कारण कुछ कहती नहीं सिर्फ खामोशी से उसकी हर बात सुनती है। पड़ोसन बहुत ही टिपिकल पात्र है बड़ी रोचक, मनोरंजक, हर काल और घर-घर में पाई जानेवाली हर बार एक सी, खास समय और चर्चा कुचर्चाओ, और खबरों में मस्त।
दुल्हन जब पहली बार अपने ससुराल मे प्रवेश करती है तो अंधेरे की वजह से उसको घुटन महसूस होती है और जब वो दरवाजे और खिड़की खोलकर रोशनी को भीतर लाने का प्रयास करती है तो माँ (सास) और जिया (दादी सास) उसे यह कहकर मना कर देते है की आज तक इस घर मे ऐसा नहीं हुआ इसलिए आगे भी नहीं होगा। घरवाले उसे रीति रिवाजों में बांधने की, परिवार और पति तक सीमित रखने की कोशिश करते है। दुल्हन धीरे-धीरे खुद को नए परिवेश मे ढ़ालती है, नए घर के तोर तरीको और परम्पराओ को अपनाती है लेकिन खुद के ‘स्व’ और ‘अस्तित्व’ को बर्करार रखते हुये। अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और मजबूत विचारों के बल पर बन्दिशों के होते हुए भी घर में बदलाव लाती है। उसे इस बात का डर नहीं है की लोग क्या कहेंगे। उसके हाथ में एक किताब है और एक संकल्प है, रोशनी का।