(आलेख – डॉ. सतीश शर्मा)
हंसावर यानी फ्लेमिंगो एक बडे आकार का लम्बी टाँगो एवं लम्बी गर्दन वाला जलीय पक्षी है जो कीचड़ से लेकर लगभग पूरा डूब जाने योग्य गहराई तक जाकर पानी में भोजन ढूँढता है। संसार में फ्लेमिंगो की चार प्रजातियां अमेरिका, अफ्रीका एवं यूरेशिया में फैली हुई है। भारत में हंसावर की दो प्रजतियां छोटा व बडा हंसावर ज्ञात है। छोटा हंसावर यानी लेसर फ्लेमिंगो कभी-कभी ही उदयपुर संभाग में आते है लेकिन ग्रेटर फ्लेमिंगो यानी बड़ा हंसावर कभी कभी तो अच्छी संख्या में हमारे यहां पहुँचते है।
ग्रेटर फ्लेमिंगों को वैज्ञानिक भाषा में फीनिकोप्टेरस रोजेयस कहते है। यह झुण्ड बना कर रहते है। हालांकि फ्लेमिंगो समुद्र तटीय क्षैत्र एवं खारे पानी की झीलों को ज्यादा पसंद करते है। लेकिन ये मीठे पानी की झीलों पर भी पहुँचते है।
हंसवार के पंखों में लम्बाई उनके भोजन के रंजकों के कारण पैदा होती है। हंसावर पानी या कीचड़ में घुस कर गर्दन को पानी में डुबों कर, चोंच को उल्टा कर ‘‘मथने’’ जैसी क्रिया कर भोजन कणों को मुँह में भरते हुए पानी को छान कर बाहर निकाल देते है एवं भोजन को निगल जाते है।
हंसावर अपनी गर्दन को झाडू या फावड़े की तरह प्रयोग कर गीले तल की कीचड़ को इकट्ठा कर एक ढेर बना देते है। यही इनका घोंसला होता है। एक जलाशय में बडी संख्या में हंसावर घोंसला बनाते है। घोंसले में प्रायः एक अण्डा जन्मा जाता है। घोंसला नर व मादा दोनों बनाते है। बच्चों का लालन-पालन भी दोनों करते है।
हंसावर उड़ते समय सामने गर्दन व पीछे पैरों को पास-पास समान्तर रखते हुए उड़ान भरते है। बडे़ आकार के होने के कारण ये कई बार बिजली के तारों से टकराकर मर जाते है या घायल हो जाते है। उदयपुर संभाग में छिछले पानी के अनेक बडे जलाशयों में बडें हंसावर को देखा जा सकता है।