उदयपुर 29 नवम्बर, 2022। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के द्वारा आयोजित एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित जैविक खेती पर अग्रिम संकाय प्रशिक्षण केन्द्र के अर्न्तगत 21 दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्र्रम ‘‘प्राकृतिक कृषि-बदलते परिदृश्य के साक्षी दृष्टिकोण एवं सम्भावनाएं‘‘ का समापन समारोह में डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने मुख्य अतिथि के रुप में संबोधन करते हुए कहा कि सेफ फूड आज के समय की आवश्यकता है तथा समाज में सेफ फूड की मांग बढ़ रही है।
अतः वैकल्पिक कृषि के रूप में प्राकृतिक ऐसी ही एक नये विकल्प के रूप में उभर रही है। आज देश के 17 राज्यों में किसी न किसी रूप में प्राकृतिक खेती की जा रही है। वर्ष 2015 से परम्परागत कृषि विकास योजना तथा 2020 से भारतीय परम्परागत कृषि पद्धति के रूप में देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। कृषि शिक्षा तथा अनुसंधान में भी प्राकृतिक खेती के संदर्भ में परिवर्तन किए जा रहे है ताकि आगामी युवा पीढ़ी प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के बारे में जागरूक हो सके तथा किसान को प्राकृतिक खेती से लाभ के अवसर ज्यादा प्राप्त हो सके। आज देश में प्राकृतिक फूड के क्षेत्र में स्टार्टअप भी कार्य कर रहे हैं। जैसे-जैसे सेफ फूड की मांग तेजी होगी, प्राकृतिक खेती की आवश्यकता बढे़गी।
देश के 29 वैज्ञानिक अब प्राकृतिक खेती के राष्ट्रीय एम्बेसेडर होंगे जिससे देश में प्राकृतिक कृषि शिक्षा, अनुसंधान तथा प्रसार के क्षेत्र में विकास में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि आज देश में 314 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन हो रहा है और 2030 तक इसे 340 मिलियन टन करने की आवश्यकता है इसके लिए मिट्टी, जल, कार्बन तथा देशज ज्ञान को बचाना आवश्यक होगा।
डॉ बसंत माहेश्वरी, प्रोफेसर, वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी सिडनी ऑस्ट्रेलिया ने बताया कि पूरे विश्व में इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि विश्व में खाद्य सुरक्षा तथा पोषण सुरक्षा तभी की जा सकती है जब प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा करते हुए खेती की जाये। आज उत्पादकता के साथ-साथ मिट्टी, पानी, कार्बन तथा जैव विविधता का संरक्षण बढ़ती जनसंख्या तथा जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर अति आवश्यक है तभी हम 21वीं शताब्दी में 9 अरब से ज्यादा जनसंख्या का भरण पोषण कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि पानी की बढ़ती कमी कृषि उत्पादन को पीछे धकेल सकती है। इसके लिए प्राकृतिक जल संरक्षण का का कार्य आवश्यक है हमारे किसान ‘वैज्ञानिक नागरिक’ के रूप में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में योगदान दे सकते हैं। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के किसानों द्वारा प्राकृतिक खेती आधारित ‘‘परमाकल्चर खेती’’ की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि अगर हम मिट्टी, पानी, हवा आदि का प्रदूषण कर रहे तो 21वीं शताब्दी में मानव जाति के लिए खाद्यान्न आवश्यकता पूरा करना संभव नहीं है।
डॉ. एस. आर. मालू, पूर्व अनुसंधान निदेशक तथा प्रबंधन मंडल सदस्य, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने कहा कि बदलती लाइफस्टाइल तथा जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों के कारण कम लागत वाली एवं स्थानीय संसाधनों आधारित प्राकृतिक खेती की स्थान विशेष के लिए आवश्यकता बढ़ रही है। इसके लिए प्राकृतिक खेती के बाजार आधारित नवाचार माॅडल विकसित करने होंगे।
डाॅ. एस. के. शर्मा, प्रशिक्षण प्रभारी एवं अनुसंधान निदेशक ने बताया कि इस प्रशिक्षण में 10 राज्यों के 15 संस्थानों के 29 वैज्ञाानिकों ने भाग लिया। प्रशिक्षण के दौरान 38 विषय विशेषज्ञों ने भाग लिया तथा 52 लेक्चर के साथ-साथ प्रायोगिक कार्य, किसाना खेत भ्रमण आदि संपादित किए गये।
कार्यक्रम के दौरान केन्द्र द्वारा लिखित प्रशिक्षण पुस्तिका का विमोचन किया गया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के निदेशक, अधिष्ठाता, विभागाध्यक्ष एवं संकाय सदस्य उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अन्त में डाॅ. बी. जी. छिपा, प्रशिक्षण सह-संयोजक द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया तथा कार्यक्रम का संचालन डाॅ. देवेन्द्र जैन, प्रशिक्षण सह-संयोजक द्वारा किया गया।